رغم أني لم أفقد الأمل بعد..
لكني اشتاق لريحك ِ..
في جوف الليل ..
أحاول الأكثار من الصلاة والدعاء لك ِ..
أنت ِ على علم مسبق..
أن سعادتك ِ هي غايتي..
لكن ما يشغلني..
هل لازالت أمطار عينيك ِ..
تهطل كل حين..؟؟
أشتاقك ِ ويعذبني الحنين..
....................!
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